ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में अपनी वास्तविक स्थिति का आभास तब हुआ जब वह कोशिश करने के बावजूद वह सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं कर पाए. सिंधिया को कांग्रेस आलाकमान से दूर करने में दिग्गी-कमलनाथ की जोड़ी ने ने प्रमुख भूमिका निभाई.
सरकार में सिंधिया समर्थक विधायकों और मंत्रियों के सामने मुश्किलें खड़ी की गईं. चुनाव में सिंधिया कांग्रेस का वचनपत्र लेकर जनता के बीच गए थे. जिसकी खुलकर उपेक्षा की जाने लगी. सिंधिया ने इसे लेकर सड़क पर धरने तक की धमकी दे डाली.
लेकिन कांग्रेस नेतृत्व इस पर चुप्पी साधे रहा. सिंधिया का गुस्सा एक दिन में नहीं उबला. ये 20 दिनों से परवान चढ़ रहा था. कांग्रेस संगठन को इस बारे में लगातार संकेत दे रहे थे. लेकिन सब मौन थे. इसलिए सिंधिया ने भाजपा में जाने के लिए सहमति दे दी. नवंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से सिंधिया लगातार इसके बारे में संकेत देते रहे थे. लेकिन उन्हें मनाने की कोशिश नहीं की गई.